उम्मीदों का ये जहाँ सारा,
है उसी का जो है दिलजला।
देख कठिनाईयां, परेशानियां,
वो दुगनी गति से चल पड़ा।
हिम्मत है मित्र उसकी,
दृढ़ निश्चय है भाई।
न रुका, थका, थमा, हारा वह,
मायूसी न उसके मुख पर छाई।
चला अकेला, मदमस्त मनचला वह,
जब भी मदद न उसने पाई।
जग ने टोका, बोला-
"अरे मूर्ख न पाओगे कुछ,
गिरकर किसने है मंजिल पाई?"
मुस्कुराकर, वह बोला-
"कुंदन वही जो तपे अग्नि में,
कहां अकेला मैं? साथ हैं, मेरे मित्र और भाई!
जग में पाया शीर्ष उसी ने,
जिसने अपनी मंजिल खुद ही बनाई।"
स्नेहा
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उम्मीदों का ये जहां सारा …….
निशब्द कर दिया
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आपका हार्दिक आभार।
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बहुत प्रासंगिक …🙂
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धन्यवाद 😊
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Wonderful lines😊
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